फतेहपुर : सो न सका कल याद तुम्हारी आयी सारी रात, ........ रमानाथ की स्मृतियों का लगा है मेला।
रमानाथ अवस्थी जी एक ऐसे कवि थे जिन्हें हिन्दी काव्य मंचों पर 'गीत ऋषि' कहकर बुलाया जाता था। एक ऐसा गीतकार जिसकी रचनाओं में जितना मिठास व सरलता थी ठीक वैसी ही मधुरता व सरलता उसके व्यक्तित्व में थी। हिन्दी कवि सम्मेलनों के मंच का एक ऐसा कवि जिसके रचना पाठ करते समय वक्त मानो ठहर सा जाया करता था। एक ऐसा कवि जो यह कहता था मेरी रचना के अर्थ बहुत हैं, जो तुम से लग जाए लगा लेना।
रमानाथ अवस्थी उन गीतकारों में शुमार थे जिनके रचना पाठ करने के बाद संचालक के समक्ष एक यक्ष प्रश्न होता था कि अब काव्य पाठ के लिए किसे आमंत्रित करे। रात्रि के तीसरे प्रहर में जब अवस्थी जी काव्य पाठ करते तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाया करते थे। अवस्थी जी को रूबरू सुनना अपने आप में एक अनुभव था। उनके गीत "सो न सका मैं याद तुम्हारी आई सारी रात और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात" ने उन्हें लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचा दिया। जैसे ही अवस्थी जी रचना पाठ करने आते श्रोता पहले से ही और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात गुनगुना उठते।
अवस्थी जी के समकालीन कवि और बेहद करीबी मित्र डॉ.कन्हैयालाल नंदन लिखते हैं -
"अजब रसायन के रचनाकार लगते हैं मुझे पंडित रमानाथ अवस्थी, जिसमें पाँच ग्राम निराला, सात ग्राम बाबा तुलसीदास, दो ग्राम कबीर और डेढ़ ग्राम रविदास के साथ आधा ग्राम 'ठाकुरजी' को खूब बारीक कपड़े से कपड़छान करके आधा पाव इलाचंद्र जोशी में मिलाया जाए तथा इस सबको अंदाज़ से बच्चन जी में घोलकर खूब पकाया जाए। रमानाथ जी का मानसिक रचाव कुछ ऐसे ही रसायन से हुआ है"।
मंचों पर अवस्थी जी प्रस्तुति बेहद सम्मोहक होती थी । उनकी रचनाओं में सहजता उनके सृजन की एक खास विशेषता रही है। लोक जीवन में उन्हें बलबीर सिंह रंग, गोपालदास नीरज, रामावतार त्यागी, सोम ठाकुर, किशन सरोज जैसे प्रख्यात कवियों की धारा में अपार यश एवं कीर्ति मिली। यदि एक वाक्य में कहना हो तो कहा जा सकता है कि रामनाथ अवस्थी विराग के कवि हैं। एक ऐसे विराग के जिसमें अनुराग की पयस्विनी सतत प्रवहमान है। आधुनिक हिन्दी कविता-विशेष रूप से गीत-धारा के पाठक समाज में उनकी कविताएँ एक अद्वितीय सृष्टि के रूप में पढ़ी और पहचानी जाती हैं।
एक बार लाल किले के कवि सम्मेलन में अवस्थी जी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की उपस्थिति में एक रचना पढ़ी :
'वह जो नाव डूबनी है मैं उसी को खे रहा हूँ
तुम्हें डूबने से पहले एक भेद दे रहा हूँ
मेरे पास कुछ नहीं है जो तुमसे मैं छिपाता
मेरे पंख कट गए हैं वरना मैं गगन को गाता....'
कविता पाठ खत्म होने के बाद चन्द्र शेखर जी ने कहा : 'रमानाथ जी, क्या ये पंक्तियाँ आपने मेरे लिए लिखी हैं?'
यह गीत ऋषि रमानाथ अवस्थी को उनके ही एक गीत द्वारा हार्दिक श्रद्धांजलि! के साथ प्रस्तुत है
सो न सका कल याद तुम्हारी आई सारी रात
और पास ही कहीं बजी शहनाई सारी रात
मेरे बहुत चाहने पर भी नींद न मुझ तक आई
ज़हर भरी जादूगरनी-सी मुझको लगी जुन्हाई
मेरा मस्तक सहला कर बोली मुझसे पुरवाई
दूर कहीं दो आँखें भर-भर आईं सारी रात
गगन बीच रुक तनिक चन्द्रमा लगा मुझे समझाने
मनचाहा मन पा जाना है खेल नहीं दीवाने
और उसी क्षण टूटा नभ से एक नखत अनजाने
देख जिसे तबियत मेरी घबराई सारी रात
रात लगी कहने सो जाओ, देखो कोई सपना
जग ने देखा है बहुतों का रोना और तड़पना
यहाँ तुम्हारा क्या कोई भी नहीं किसी का अपना
समझ अकेला मौत तुझे ललचाई सारी रात
मुझे सुलाने की कोशिश में, जागे अनगिन तारे
लेकिन बाज़ी जीत गया मैं वे सब के सब हारे
जाते-जाते चाँद कह गया मुझसे बड़े सकारे
एक कली मुरझाने को मुस्काई सारी रात
बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे पं. रमानाथ
जनपद की माटी से ताल्लुक रखने वाले देश के वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार व समाचार संपादक पं. रमानाथ अवस्थी का जन्म भिटौरा ब्लाक के लालीपुर गांव में आठ नवंबर 1924 को हुआ था। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। एक दर्जन से अधिक पुरस्कार व सम्मानों के साथ लगभग दो दर्जन से अधिक प्रकाशित कृतियां आज भी साहित्य जगत का मार्गदर्शन कर रही हैं। छायावादोत्तर गीतकारों में अग्रगण्य रमानाथ जी आशुकवि जगमोहननाथ अवस्थी के पुत्र थे।
रमानाथ अवस्थी
● जन्म 8 नवम्बर 1924
● निधन 29 जून 2002
● उपनाम रसखान
● जन्म स्थान फतेहपुर, उत्तर प्रदेश
● कुछ प्रमुख कृतियाँ
● जीवन परिचय
रमानाथ अवस्थी का जन्म फतेहपुर, उत्तरप्रदेश , 1924 में हुआ। इन्होंने आकाशवाणी में प्रोडयूसर के रूप में वर्षों काम किया। ‘सुमन- सौरभ, ‘आग और पराग, ‘राख और शहनाई तथा ‘बंद न करना द्वार’ इनकी मुख्य काव्य-कृतियां हैं। ये लोकप्रिय और मधुर गीतकार हैं। इन्हें उत्तरप्रदेश सरकार ने पुरस्कृत किया है। 29 जून 2002 को उनका निधन हो गया।
इन्होंने इलाहाबाद के दैनिक भारत और 'संगम' का सम्पादन किया, फिर आकाशवाणी दिल्ली से जुड़ गये और वहाँ विविध भारती, युववाणी के रूपक प्रस्तुतकर्ता तथा चीफ प्रोड्यूसर रूप में 35 वर्षों तक कार्य किया अवस्थी जी ने शताधिक रूपकों की रचना की है। इनके तीन गीत संग्रह बहुचर्चित रहे हैं-आग और पराग, रात और शहनाई तथा बन्द न करें द्वार। दिल्ली में ही इनका निधन हुआ।
कविताकोश पर आपकी उनकी रचनाओं को और अधिक विस्तार से देख व पढ़ सकते हैं।
● प्रकाशन और सम्मान : आग और राग, रात और शहनाई, बन्द न करना द्वार, आकाश सबका है तथा आखिर यह मौसम भी आया (सभी काव्य संकलन), याद आतें हैं (संस्मरण) आधुनिक हिन्दी साहित्य के शीर्षस्थ संगीतकारों में प्रख्यात हिन्दी अकादमी, दिल्ली ने 1980 में साहित्य क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए सम्मानित किया। 1990 में नागरिक परिषद दिल्ली द्वारा सम्मानित।
1994 में लंदन, मैनचेस्टर, एवं नेपाल में काव्य पाठ के लिए आमंत्रित। इसके अलावा वियतनाम की यात्रा भी की।
1980 में गालिब अकादमी दिल्ली ने सर्वश्रेष्ठ गीतकार का सम्मान
दिया। 1992 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग ने 'साहित्य महामहोपाध्याय' की उपाधि प्रदान की। भारतीय आत्मा स्मारक समिति, कानपुर ने 1972 में गोमती वृन्दावन सम्मान प्रदान किया।
1993 में महाराष्ट्र में परिवार साहित्य सम्मान' से अलंकृत।
1990 में भारत भवन, भोपाल तथा बीबीसी लंदन से विशेष काव्य
पाठ।
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