• पुस्तक प्रेमियों को ब्लॉग से जुड़ना चाहिए
• गोष्ठी एवं कवि सम्मेलन में जुटी साहित्य जगत की हस्तियां
• शत-प्रतिशत साक्षरता के बगैर समाज का विकास संभव नहीं
•अमर उजाला ब्यूरो
हंसवा/फतेहपुर।
बदलाव की अपेक्षा केवल राजनीतिक शक्ति से ही नहीं की जा सकती, बल्कि
साहित्यिक शक्ति भी समाज को बदल सकती है। साहित्य ने तो अमेरिका जैसे देश
में संविधान बदलने को मजबूर कर दिया। जब खड़ाऊं पहनने वाले लोग आज जूते पहन
सकते हैं, पैदल चलने वाले लोग आज जहाज से चल सकते हैं तो पुस्तकोें के
प्रेमी अब ब्लॉग से क्यों नहीं जुड़ रहे हैं। समय के साथ सबको बदलने की
जरूरत है।
यह कथन जनवादी लेखक संघ
राष्ट्रीय परिषद के सदस्य केशव तिवारी का। मौका था किताबें कुछ कहना चाहती
हैं, हमारे पास रहना चाहती हैं नामक शीर्षक की विचार गोष्ठी का। रानी
कालोनी स्थित विद्या निकेतन इंटर कालेज में गैर जनपदों से साहित्य जगत की
नामचीन हस्तियों ने मंच की शोभा बढ़ाई। इस मौके पर सुधीर सिंह ने कहा कि
महान लेखक नागार्जुन ने कहा था कि जो कविता पाठ्यक्रम में सम्मिलित हो जाती
है, वह सुहागिन हो जाती है। हमारे समाज में 15-15 साल तक पाठ्यक्रम में
परिवर्तन नहीं होता। लेकिन दक्षिण में रिचार्ज की दुकानों की भांति पुस्तक
की लाइब्रेरी खुली हुई हैं। यही एक वजह है कि वहां शत-प्रतिशत साक्षरता है।
ज्ञानेंद्र गौरव ने कहा कि साहित्य अपनी ऊर्जा से समाज में क्रांति ला
सकता है। शैलेश गुप्त ने कहा कि समाज में मौलिक लेखकों का अभाव है। नरोत्तम
सिंह ने कहा कि कार्लमार्क्स की पुस्तक दास कैपिटल यूरोप और अमेरिका एवं
जापान के राष्ट्रपति ने पढ़कर विपत्ति के समय अपने आपको को संभाला था।
इलाहाबाद से आए गोपीनाथ द्विवेदी ने कहा कि पुस्तकों को मनोनुकूल बनाने के
लिए अन्वेषित सामग्री ही लिखना चाहिए। अध्यक्ष श्रीकृष्ण कुमार त्रिवेदी ने
कहा कि जो पुस्तकें यहां बिक नहीं पाती, दक्षिण के प्रकाशकों ने हमसे
मांगकर छपवाई। इस अवसर पर मुख्य रुप से प्रवीण त्रिवेदी, महेशचंद्र
त्रिपाठी और महिला डिग्री कालेज के बी.के. पांडेय, कमल साहू, उमाशंकर,
शैलेंद्र द्विवेदी, श्रवण कुमार आदि लोग उपस्थित रहे। अध्यक्षता श्रीकृष्ण
कुमार त्रिवेदी ने की और संचालन शिव शरण बंधु ने किया। आयोजन युवा कवि
प्रेम नंदन लोधी ने किया।
आपकी पारखी नजरों की रिपोर्टिंग ने कार्यक्रम की बहुत ही उम्दा तस्वीरें पेश की ! आभार !
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