प्रेमनंदन |
डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी |
फतेहपुर के समूचे साहित्यिक परिदृश्य को रेखांकित करने के लिए युवा रचनाकार एवं अपने रचना कर्म को अपने हिन्दी ब्लॉग "आखरबाड़ी" के माध्यम से दुनिया तक फैलाने में संलग्न श्री प्रेम नंदन जी ने साहित्य की विभिन्न विधाओं पर फतेहपुर जनपद के इतिहास को समेटे ग्रंथों ‘अनुवाक और उसकी अगली कड़ी अनुकाल’ के प्रधान सम्पादक डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी जी से एक लम्बी बातचीत की है। डा. ओऽमप्रकाश अवस्थी ने साहित्य और विशेषकर समालोचना के क्षेत्र में अपनी मौजूदगी का बखूबी अहसास कराया है। निःसंदेह इन्हें फतेहपुर जिले की आलोचना परंपरा का प्रतिनिधित्व करने वाले शिखर पुरुष का दर्जा प्राप्त है। साहित्य के इस पुरोधा की कृतियों में रचना प्रक्रिया , नई कविता, आलोचना की फिसलन , अज्ञेय कवि व अज्ञेय गद्य प्रकाशित हुई है। साहित्य की अनेक विधाओं पर इस लंबी पर गंभीर बातचीत को यहाँ पर क्रमशः प्रस्तुत किया जाएगा। प्रस्तुत है इस कड़ी का द्वितीय हिस्सा ...
प्रेम नंदन- डॉ0 साहब, आप फतेहपुर जनपद में काव्य परम्परा का प्रारम्भ कहाँ से मानते हैं?
डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी-
नंदन जी, फतेहपुर सन् 1826 में बना और इतिहास लेखकों ने 1826 में जो
क्षेत्र फतेहपुर में लिया गया उसमें पैदा हुए रचनाकारों को फतेहपुर का कवि
मान लिया। इस समय जो साहित्य, फतेहपुर जिले के अन्तर्गत निरूपित किया गया
उसमें अकबरी दरबार के कवियों से इसका प्रारम्भ होता है।
असनी के कवियों ने आचार्य विश्वनाथ को, जो जलालउद्दीन के समय के संस्कृत के
आचार्य थे, उनका सम्बन्ध फतेहपुर से जोड़ना चाहा परन्तु प्रमाणित नहीं कर
सके। यों मान लो कि हिन्दी कवियों का अकबरी दरबार से पहले प्रमाण नहीं
मिलता। उन कवियों में- करनेस, मानराय, और मुख्य रूप से नरहरि का नाम लिया
जाता है। यद्यपि नरहरि पखरौली, जिला रायबरेली के रहने वाले थे परन्तु अकबर
ने असनी और आस-पास के गाँव उन्हें प्रदान किये थे इसलिए वह फतेहपुर के
कवियों में ही परिगणित किये जाते हैं।
प्रेम नंदन- डॉ0 साहब, फतेहपुर के कवियों की दरबारी परम्परा कब तक चली और उसके बाद कविता का क्या स्वरूप बना?
डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी-
फतेहपुर के कवियों की आप तीन कोटियाँ बना सकते हैं- पहली कोटि फतेहपुर की
धरती के उन कवियों की है जो फतेहपुर से अन्यत्र जाकर दूसरे दरबारों में
रहे। दूसरी कोटि उन कवियों की है जो बाहर से आकर फतेहपुर के छोटे रजवाड़ों
में रहे और तीसरे कोटि में वे कवि आते हैं जो कहीं नहीं गए और वे फतेहपुर
के अंचल में ही रहे। यही तीनों कोटियाँ अब तक किसी न किसी रूप में चली आ
रही हैं और शायद आगे भी चलती रहेगी।
दरबारी कविता की परम्परा सन् 1900 तक तो बड़ी मजबूती से चलती रही जिसके
अन्तिम कवि, असनी के सेवक जो काशी नरेश के दरबारी थे और पुरंदरराम त्रिपाठी
जो जयपुर में महाराज राम सिंह के सभा कवि थे। ज्यों ज्यों रजवाड़े टूटते
रहे, कविता की विधाएँ बदलती गईं और साहित्यिक कर्म में राजदरबारी कवियों के
प्रति सम्मान का भाव न रह गया।
इसके बाद कविता का स्वरूप बदला और भारतीय नव जागरण और राष्ट्रीय जागरण से
जुड़कर आगे बढ़ा। इस सम्बन्ध में सीमा रेखा बहुत स्पष्ट नहीं हैं क्योंकि
राष्ट्रीय कविता का स्वरूप सन् 1860 के आस-पास आना शुरु हो गया था।
प्रेम नंदन- राष्ट्रीय नव जागरण के प्रमुख कवि कौन-कौन थे और उनका क्या योगदान रहा?
डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी-
हिन्दी में फतेहपुर को राष्ट्रीय कविता से जोड़ने का कार्य लाला भगवानदीन
‘दीन’ ने किया। लाला जी रीतिकालीन आचार्य परम्परा के अच्छे ज्ञाता थे लेकिन
वे विदेशी दासता से उतना ही खिन्न थे जितना कि उस समय का जनमानस और
राष्ट्रीय राजनैतिक दल। उन्होंने अतीत के चरित्रों को लेकर देश प्रेम की
ओजस्वी कविताएँ लिखीं। उनके साथ-साथ उनकी पत्नी, जो बुन्देला बाला के नाम
से लिखती थीं; उन्होंने भी देशभक्ति की रचनायें लिखीं। राष्ट्रभक्ति की
काव्यधारा में लिखने वालों में बाबू वंशगोपाल का अप्रतिम योगदान है।
उन्होंने राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत ‘‘सत्याग्रह और असहयोग का आल्हा’’
लिखा लेकिन सरकारी प्रतिबन्धों के कारण वह जनता के बीच न आ पाया।
मालवीय जी से गुरु भाव रखने वाले पण्डित सोहन लाल द्विवेदी जी ने भी
राष्ट्रीय कवितायें लिखीं। इसके साथ-साथ हरिदत्त शर्मा ‘हरि’, रामस्वरूप
अवस्थी, दुलारे सिंह ‘वीर’, मातादीन शुक्ल, जगमोहन नाथ अवस्थी, जगन्नाथ
प्रसाद त्रिपाठी ‘पथिक’, छेदीलाल पाण्डेय ‘भण्डाफोड़’, रामशरण शुक्ल,
गौरीशंकर अग्निहोत्री आदि ऐसे नाम हैं जो देशप्रेम, देशभक्ति और
राष्ट्रीयता की रचनायें लिखते रहे इनमें बहुतों की रचनाओं का प्रकाशन बाद
में हुआ और कुछ का नहीं भी हुआ। फतेहपुर की यह धारा वैसी ही मजबूत थी जैसे
रीतिकालीन कवियों की धारा।
प्रेम नंदन- उस युग की अन्य कौन सी काव्य धारायें रहीं जिनमें फतेहपुर के कवियों ने रचनायें की?
डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी-
इस अवधि में कविता के समक्ष भाषा का विवाद भी बहुत प्रबल था। जिन आचार्यों
ने कविता के लिए ब्रजभाषा को ही उपयुक्त समझा था और उसमें रचनायें भी
लिखी, उनमें रामशंकर शुक्ल ‘रसाल’ का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। रसाल
जी ने एक ओर जगन्नाथ दास ‘रत्नाकर’ के उद्धव शतक की भूमिका लिखी, उसी के
साथ ठेठ हिन्दी का ठाठ वाले अयोध्या प्रसाद उपाध्याय ‘हरिऔध’ के रसकलश की
भी भूमिका लिखी और स्वयं ‘उद्धव शतक’ के नमूने का एक बड़ा काव्य ग्रन्थ -
‘‘उद्धव ब्रजांगना’’ के नाम से लिखा।
दूसरी धारा जो तात्कालिक हिन्दी या द्विवेदी युगीन हिन्दी की अनुकरणशील थी,
उसमें तरह-तरह की इतिवृत्तात्मक रचनायें भी लिखी गईं और जो हिन्दी का मानक
गाँधी जी ने स्थापित किया था, उस हिन्दी में भी कविताएँ लिखी गईं जिनमें
प्रमुख रचनाकार श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ तथा बाबू वंशगोपल आदि थे। इसके साथ
ही छायावादी काव्य का प्रतिनिधित्व जीवन शुक्ल ने ‘बंशी तुम धरा दो’ तथा
डॉ0 सुखनिधान सिंह ने अपनी पुस्तक ‘‘अर्न्तज्योति’ में किया।
प्रगीत धारा का प्रतिनिधित्व रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ ने किया तथा प्रगतिवादी
ढंग की रचनाओं का श्रीगणेश दीपनारायण सिंह, जीवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
उर्फ जीवन दद्दा ने किया।
अपनी-अपनी रुचि के अनुसार राजनैतिक, धार्मिक, भक्ति सम्बन्धी, प्रेम
सम्बन्धी कविताएँ भी लोग लिखते रहे। इस काल के अन्य प्रबुद्ध कवि तारकेश्वर
बाजपेयी, सत्यपाल ‘सत्य’, बद्रीप्रसाद गुप्त ‘आर्य’, रामबिहारीलाल
श्रीवास्तव ‘आजम’ तथा समरजीत सिंह ‘जलाल’ आदि हैं।
डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी |
प्रेम नंदन-
डॉ0 साहब, जनपद में गीत धारा का विकास आप कहाँ से मानते हैं? यहाँ के
प्रमुख गीतकारों एवं उनकी कृतियों पर प्रकाश डालने की कृपा करें।
डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी-
फतेहपुर में गीत उतने ही पुराने सन्दर्भ में जायेगा जितना कविता का
सन्दर्भ। भक्त, साधु-सन्तों में किसी वाद्य यन्त्रों के साथ भजनानंदी गीत
गाने की अभिरुचि थी। ये काव्य शास्त्रीय छन्दों को सस्वर पढ़ते थे। हसवा के
स्वामी चन्द्रदास के अन्तरापद के साथ लिखे हुए गीत मिलते हैं।
वर्तमान धारा में मातादीन शुक्ल उनके पुत्र रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ ने
गीतात्मक कविताएँ लिखीं। अंचल तो प्रगीत धारा के प्रमुख हस्ताक्षर ही हैं।
इसके अलावा रामशरण शुक्ल, जगमोहन नाथ अवस्थी, सोहनलाल द्विवेदी, जीवन
शुक्ल, दुलारे सिंह ‘वीर’, सुरेन्द्रपाल सिंह, सत्यपाल ‘सत्य’ आदि कवियों
के गीत कवि मंचों पर सुनने को मिलते थे। गीत को अखिल भारतीय स्तर पर
स्थापित करने का श्रेय जनपद के पं0 रमानाथ अवस्थी को है।
प्रेम नंदन- वर्तमान समय में प्रमुख गीतकार कौन-कौन से हैं?
डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी-
प्रेम नंदन जी, वर्तमान समय में अनुसंधानकर्ता ने फतेहपुर के पाँच सौ से
अधिक कवियों का नामोल्लेख किया है। यदि मैं यह मान लूँ कि इसमें आधे भी
गीतकार होंगे तो नामों की संख्या से ही बहुत स्थान घिरेगा लेकिन कुछ नाम
में आपको अवश्य बताऊँगा। सस्वर पढ़ने वाले और लिखने वालों में चन्द्रिका
प्रसाद दीक्षित ‘ललित’, धनंजय अवस्थी, देवदत्त आर्य ‘देवेन्द्र’, हरिप्रसाद
शुक्ल ‘अकिंचन’, रहमत उल्ला नजमी, जानकी प्रसाद श्रीवास्तव ‘शाश्वत’, भइया
जी अवस्थी ‘करुणाकर’, बृजमोहन पाण्डेय, चन्द्र कुमार पाण्डेय, रामलखन
परिहार ‘प्रांजल’, शिवशरण सिंह चौहान ‘अंशुमाली’, रामसजीवन मिश्र,
आनन्दस्वरूप श्रीवास्तव ‘अनुरागी’, रामेश्वर मौर्य, कृष्ण कुमार सविता,
चन्द्रशेखर शुक्ल, विष्णु शुक्ल आदि जितने भी कवि हैं सभी लगभग 60वर्ष के
आस-पास के हैं।
नई पीढ़ी का नेतृत्व करने के लिए नये-नये हस्ताक्षर मंचों में आगे आ रहे हैं
तथा उनके संकलन प्रकाशित हो रहे हैं। इनकी साहित्यिक अभिरुचि देखकर
गीतधारा के प्रवाह में गति बनी रहने की आशा जगती हे। नई पीढ़ी के प्रमुख
गीतकार, धर्मचन्द्र मिश्र कट्टर, समीर शुक्ल, अनिल तिवारी ‘निर्झर’,
ज्ञानेन्द्र गौरव, शैलेष गुप्त ‘वीर’ प्रेम नंदन, प्रवीण श्रीवास्तव,
बृजेन्द्र अग्निहोत्री, रक्षपाल पासवान आदि हैं।
प्रेम नंदन- जनपद में गीतकारों की समृद्ध परम्परा के बीच नवगीत एवं नवगीतों की क्या स्थिति हैं?
डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी- नंदन जी, जनपद में नवगीत सशक्त ढंग से लिखे
जा रहे हैं लेकिन नवगीतकारों की संख्या बहुत कम है। प्रायः लोग मंचों पर
अपने मध्यकालीन गीतों को नवगीत कहकर प्रस्तुत करते हैं। वस्तुतः नवगीत, गीत
का कथ्य और शिल्प के स्तर पर नया रूप है और छोटी अन्तरा, अभिव्यक्ति में
कसावट भाव की अप्रस्तुत और प्रतीक के माध्यम से कहा कहना इसकी विशेषता है।
साथ ही समाज के परिवर्तनों के समानान्तर रेखांकित करना इसका प्रमुख लक्षण
है। एक नवगीतकार के लिए उत्तर आधुनिकता की मानसिकता का होना बहुत जरूरी है।
नवगीत का वर्तमान, आधुनिक भावबोध से जो अन्योन्याश्रित रिश्ता है उसका
निर्वाह जनपद के एक मात्र साहित्यकार श्री श्रीकृष्ण कुमार त्रिवेदी ने
किया है। उनके अलावा धनंजय अवस्थी ने भी नवगीत लिखें हैं। इनके साथ-साथ इस
समय वेदप्रकाश मिश्र, शिवशरण बन्धु, ज्ञानेन्द्र गौरव आदि कई रचनाकार इस
दिशा में निरन्तर प्रयत्नशील हैं और नवगीतों की रचना करके इसकी अभिवृद्धि
कर रहे हैं।
........क्रमशः जारी है!
rachnakaron ke liye jitna jaruri rachnadharmita me nit naye prayogon se sahitya ki unnati karna hai utna hi itihashpurush ban chuke apni mati ka gaurav badhane wale rachnakaron ke krititva evam vyaktitva ko gahrai se jan_na.aapke is link me uplabdh dr.o.p. awasthi ji se sakshatkar ki dusri kadi tamam jankariyon ke sath hame in mahan sahitykaron ki kritiyon ke adhyayan ko bhi prerit karti hai.
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 12-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंविस्तृत जानकारी के लिए आभार !
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