प्रेमनंदन |
डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी |
फतेहपुर के समूचे साहित्यिक परिदृश्य को रेखांकित करने के लिए युवा रचनाकार एवं अपने रचना कर्म को अपने हिन्दी ब्लॉग "आखरबाड़ी" के माध्यम से दुनिया तक फैलाने में संलग्न श्री प्रेम नंदन जी ने साहित्य की विभिन्न विधाओं पर फतेहपुर जनपद के इतिहास को समेटे ग्रंथों ‘अनुवाक और उसकी अगली कड़ी अनुकाल’ के प्रधान सम्पादक डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी जी से एक लम्बी बातचीत की है। डा. ओऽमप्रकाश अवस्थी ने साहित्य और विशेषकर समालोचना के क्षेत्र में अपनी मौजूदगी का बखूबी अहसास कराया है। निःसंदेह इन्हें फतेहपुर जिले की आलोचना परंपरा का प्रतिनिधित्व करने वाले शिखर पुरुष का दर्जा प्राप्त है। साहित्य के इस पुरोधा की कृतियों में रचना प्रक्रिया , नई कविता, आलोचना की फिसलन , अज्ञेय कवि व अज्ञेय गद्य प्रकाशित हुई है। साहित्य की अनेक विधाओं पर इस लंबी पर गंभीर बातचीत को यहाँ पर क्रमशः प्रस्तुत किया जाएगा। प्रस्तुत है इस कड़ी का प्रथम हिस्सा ...
प्रेम नंदन- डॉ0 साहब आपने नई कविता को गहराई से देखा और परखा है, कृपया बतायें कि नई कविता का जन्म कब और किन परिस्थितियों में हुआ?
डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी- छायावादी कविता के अमृर्त विधान के प्रति, प्रतिक्रिया स्वरूप नई कविता का जन्म हुआ। जिसने द्वितीय विश्व युद्ध की त्रासदी के कारण प्रत्येक क्षेत्र के सामाजिक परिर्वन के आधार बनाया और मनुष्य के सामने मुँह बाये खड़े मृत्यु भय, सन्त्रास, घुटन और निराशा को रोका। चूँकि इसमें सम्पूर्ण मानव जाति के सन्दर्भों का आंकलन था इसलिए पाश्चात्य प्रभाव भी कविता में पड़ा जिसकी पहली अभिव्यक्ति ‘तार सप्तक’ संकलन में हुई। नई कविता ने युद्ध त्रासदी से पीड़ित मानव-सम्बन्धों को केन्द्र में रखकर छायावाद से नितान्त भिन्नता रखने वाली रचना प्रक्रिया को अपनाया। नई कविता ने छायावाद की वायवीह भाषा के स्थान पर लोकजीवन में प्रचलित बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया। इसका प्रारम्भिक रूप से प्रयोगशील कविता के नाम से आया, बाद में इसी को नई कविता कहा जाने लगा।
प्रेम नंदन- डॉ0 साहब, नई कविता की क्या विशेषतायें हैं?
डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी- नई कविता वैश्विक स्तर पर बदलती हुई मानवीय संवेदनाओं को चित्रित करने की कविता है। इसमें किसी प्राचीन परम्परा के आग्रह के प्रति दुराग्रह नहीं है परन्तु उसे आँख मूँदकर स्वीकार कर लेने का भाव भी नहीं है। नई कविता पौराणिक बड़प्पन के स्थान पर समाज का सामान्य अकेला और जिजीविषा से भरा मानव व्यक्तित्व केन्द्र में रखा। इसने उपदेश, ज्ञान, इतिहास आदि से अपने को मुक्त करके प्रतीकों के नये प्रयोग, टटके बिम्ब ताजे उपमान और मिथकों के नये सन्दर्भ ग्रहण किये।
प्रेम नंदन- फतेहपुर में नई कविता का प्रारम्भ कब से मानते हैं?
डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी- मैं फतेहपुर सन् 1969 में आया, उस समय साहित्यिक मंचों में प्रायः पारम्परिक कविता और गीत पढ़े जाते थे। नई कविता के हस्ताक्षर के रूप में मेरी पहली मुलाकात श्रीकृष्ण कुमार त्रिवेदी से हुई चूँकि वह कई वर्ष के विदेश-भ्रमण के बाद लौटे थे, इसलिए उनको साहित्य के बाह्य परिवेश की जानकारी थी और नई कविता के काव्यात्मक स्वरूप से भी परिचित थे। वे मंचों में शास्त्रीय, पारंपरिक कविता के साथ-साथ अनुरोध करने पर नई कविता भी सुना देते थे। मैंने प्रथम बार उनसे ‘श्वेत श्यामपट’ शीर्षक से यह कविता सुनी जो मानव-जाति के रंग-भेद पर बहुत तीखी प्रतिक्रिया थी। बाद उन्होंने इसी शीर्षक से अपनी नई कविताओं का एक संकलन भी तैयार किया। उनकी एक लम्बी कविता ‘कुरुक्षेत्र से राधा के नाम’ काफी चर्चित हुई जिसमें युद्ध और शान्ति के विषय को, गीता के मिथकीय सन्दर्भ को आधुनिक परिवेश में उद्धृत किया गया है।
प्रेम नंदन- पौराणिक चरित्रों का प्रतीकत्व नई कविता में कैसे आया?
डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी- नई कविता ने पौराणिक चरित्रों को बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के परिवेश में प्रस्तुत किया और उनको अपने यंग के सन्दर्भों और अन्तर्द्वन्दों के अनुसार ढाला। यथा-धर्मवीर भारती का ‘अन्धा युग’, नरेश मेहता का ‘संशय की एक रात’ कुंवर नारायण का ‘आत्मजयी’ श्री कृष्ण कुमार त्रिवेदी की ‘कुरुक्षेत्र से राधा के नाम’ आदि ऐसी रचनायें हैं जिनमें चरित्र तो प्राचीन एवं पौराणिक हैं लेकिन उनका चिन्तन और कर्म, उनके हृदय में उठने वाले अर्न्तद्वन्द नितांत आधुनिक है।
साक्षात्कार देते हुए डा० ओऽमप्रकाश अवस्थी जी (बाएं) साथ में प्रेम नंदन जी (दायें ) |
प्रेम नंदन- जनपद में श्री कृष्ण कुमार त्रिवेदी जी के अतिरिक्त नई कविता के और कौन-कौन से प्रमुख हस्ताक्षर है और उनका क्या योगदान है?
डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी- छन्द की पंक्तियाँ तोड़कर और गद्य को छोटी-बड़ी पंक्तियों में लिखना नई कविता नहीं है। नई कविता का कवि भाषा पर इतना अधिक दबाव बनाता है कि जितने शास्त्रीय प्रतिमानों को वह छोड़ देता है, उन सबसे आगे जाने के लिए नई भाषा, नये प्रतीक एवं अभिव्यक्ति के नये रास्तों की खोज करता है। जनपद में भाषा की कसावट एवं उसमें भावात्मक दबाव बनाने वाले कवि कम है। सातवें दशक के बाद धीरेन्द्र विद्यार्थी ने कुछ नई कवितायें लिखीं। नई कविता में इधर एक काव्य संकलन ‘सपने जिन्दा है अभी’ आया है जिसमें भाषा का कच्चापन साफ झलकता है लेकिन कविताओं में परिवर्तित मूल्यों की पकड़ है। इसके अतिरिक्त भी कुछ संकलन आये हैं। इस समय ज्ञानेन्द्र गौरव, प्रेम नंदन, शैलेष गुप्त ‘वीर’, प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, बृजेन्द्र अग्निहोत्री, वेदप्रकाश मिश्र, आशुतोष वर्मा आदि कई लोग नई कविता लिख रहे हैं और पत्र-पत्रिकाओं में छप रहे हैं।
प्रेम नंदन- नई कविता का जनपद में आप क्या भविष्य देखते हैं?
डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी- नई कविता का भविष्य कवियों की साधना पर निर्भर करता है। इधर नई कविता लिखने वाले कवियों की संख्या में वृद्धि हुई है यह साहित्य के विकास का एक शुभ लक्षण है यहाँ के कवि जो नई कविता लिख रहे हैं या नई कविता के जो संकलन प्रकाशित हो रहे हैं, उनमें मेहनत और परिमार्जन की आवश्यकता है। यदि ये कवि समाज के बदलते तेवर, मूल्यों की पहचान और भाषा की कसावट पर ध्यान देते रहेंगे तो उनका भविष्य अच्छा रहेगा।
प्रेम नंदन- वर्तमान में नई कविता गद्य बनती जा रही है, क्यों?
डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी- मनुष्य अपने पारम्परिक, भावुकतापूर्ण सन्दर्भों से कटता जा रहा है। उसमें एक वैचारिक स्वार्थ बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। उसका अन्तःकरण को काव्यात्मक है लेकिन अभिव्यक्ति के लिए नई भाषा की खोज नहीं कर पा रहा है, जिसमें वह अपने विचारों को व्यक्त कर सके। वैचारिक दबाव के कारण अभिव्यक्ति का गद्यात्मक होते जाना स्वभाविक है पर कवियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि नई कविता भी कविता है, वह गद्य नहीं है।
प्रेम नंदन- नई कविता के कवियों को आप क्या सन्देश देना चाहेंगे?
डॉ0 ओऽमप्रकाश अवस्थी- नये कवि भाषा के साथ कठिन परिश्रम करें और आज के परिवेश के अर्न्तद्वन्द तथा मनुष्य की कुण्ठा नैराश्य, अकेलेपन को उद्घाटित करने के लिए तदनुरूप भाषा का सृजन करें। सभी कवियों के प्रति मेरी मंगलकामना है कि वे यशस्वी हों।
क्रमशः जारी है ........
यह मुलाक़ात अच्छी रही.....मैं भी एक बार श्रीकृष्ण कुमार त्रिवेदी से मिला हूँ. इनके अलावा श्री धनञ्जय अवस्थी और श्री चंद्र कुमार पाण्डेय भी कविताई करते रहे हैं !
जवाब देंहटाएंDr. Om Prakash Awasthi ji ko sun_na-padhna bauddhik vatavarn me vichran karne-sa hota hai.vastav me naye rachnakaron ko to seekhne ke liye bahut kuchh milta hi hai balki yeh kahna adhik uchit hoga ki lekhan ki kisi bhi vidha se rane rachnakaron ke kaam ki bahut si baaten sahaj hi aapke vaktavya me aa jati hain.apke is link ke madhyam se nai kavita par Dr. O.P. Awasthi ji ke vichar padhne ko mile, hardik dhanyawad kripya aage bhi jaari rakhein.(-PRAVEEN KUMAR SRIVASTAV)
जवाब देंहटाएंprem nandan ji mai aapse mulakat karna chahta hu , kripya address , contact no. den.thanks
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