भौतिक विज्ञान बढ़ा इतना कि दौड़ मच गई पाने की,इच्छाऐं जागी जन जन में भौतिक सामान जुटाने की।कैसी रीति यहां पर आई अपने को बड़ा दिखाने की.....साठ बरस के बाद भी आजादी की करूण कहानी है...........आजादी के मूल्यों की मिटती जा रही निशानी है।
देश प्रेम के साथ समाज सेवा के लिये अपनी लेखनी चलाने वाले लेखक श्री शुक्ल का कहना था कि कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध आदि के माध्यम से अपनी अंर्तव्यथा को व्यक्त करता हूं। अपनी नव रचना "भारतीय समाज अतीत और वर्तमान" पुस्तक में उन्होंने हमारे समाज के बीते हुये समय और आज के समय को देख कर हुये बदलावों पर अपनी नजर डाली है। समाज की कमियों और भविष्य की संभावनाओं का सहज ही पता चलता है इस कृति को पढ़ते हुये। लेखक ने अपनी रचना में साहित्यक, शैक्षिक, वैज्ञानिक, तकनीकी, औद्योगिक और आर्थिक समृद्धि के प्राचीन राष्ट्रीय गौरव की अनेकानेक उपलब्धियों को उद्धृत करते हुये धीरे धीरे राष्ट्र के रसातल में पहुंचने और विचार शून्यता की स्थिति तक पहुंचने के हालातों तक नजर डाली है।
श्री कृपाशंकर शुक्ल जो कि एक अध्यापक रहे है और उसी गुरू दृष्टि से जब उन्होने इस देश समाज को देखा तो इसकी विद्रूपताओं से व्यथित हो उठे इसके बाद आकुल अंतर में जन्मी पीड़ा कलम से बह निकली। और जो कि साहित्य की लगभग हर विधा में बही। वह बताते है कि आकुल अंतर में जब-जब पीड़ा घनीभूत होती रही तभी कुछ न कुछ उमड़ पड़ा।
प्रदेश सरकार द्वारा साहित्य भूषण सम्मान से नवाजे जा चुके इस वरिष्ठं चिंतक ने, जिन्होने अध्यापन से अवकाश ग्रहण करने के बाद एक हिंदी पाक्षिक पत्रिका का संपादन, प्रकाशन कर भारत भारती की सेवा करते हुये साहित्य सृजन द्वारा समाज सेवा करने के साथ समाज को दिशा देने का कार्य स्वीकार कर अपने सरोकारों के प्रति अपनी लगन जताई। उन्होने 'अंतर्व्यथा', 'नारी,काव्य संग्रह' देने के साथ 'काशी की कविता', 'राष्ट्र के प्रेम गीत', 'पूर्वाचल की माटी', 'चुनल गीत' जिसमें भोजपुरी गीतों का संकलन है, आदि काव्य संकलनों का संपादन किया। 'वैचारिकी' नाम से निबंध संग्रह और 'चालीस साल बाद' नाम का लघु उपन्यास भी दिया। समाज के लिये सर्मपित 'मैं और मेरा जीवन;' जैसी रचनायें देकर साहित्य को समृद्घ किया है।
पं. कृपा शंकर शुक्ल को हमारी तरफ़ से भाव भीनी श्रृद्धांजलि
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