दूसरे की रोटी पर जबरन कब्जा करने वालों जरा मेहनत की खाना सीखो। नियम सबके लिए एक होते हैं चाहे वह राजा हो या फिर प्रजा।
फतेहपुर शहर की माटी में पचीस साल बाद स्वामी परमानन्द की दिव्यवाणी को सुनने के बाद पंडाल में बैठे सभी श्रोता भाव विभोर हो उठे।शहर के गाजीपुर बस स्टैंड के पास अशोक नगर में चल रहे दो दिवसीय गीता प्रवचन का पहला दिन था। दोआबा की माटी (मवई धाम ) में जन्में स्वामी जी करीब पचीस वर्षो बाद यहां पर प्रवचन देने के लिए आये। लोगों में उनके दर्शनों की विशेष लालसा दिखी। स्वामी जी के साथ अमेरिका से आयीं शिष्या वैलरी भी मौजूद रहीं।
स्वामी जी ने कहा कि धर्म का हर नियम कानून में बंधा है हमें उसी के अनुसार चलना चाहिए। आज राजा भी नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। लोगों में दूसरे की छीनने की प्रवृत्ति ज्यादा दिख रही है लोग मेहनत करना नहीं चाहते। आन्तरिक स्वतंत्रता तो होनी चाहिए पर अपनी सीमाओं में रहकर ही।
स्वामी जी ने बताया कि वह अपने गुरु स्वामी अखंडानंद जी के बताये पद चिह्नों पर चलकर ही देश व जनता की सेवा कर रहे हैं तथा लोगों में धर्म व संस्कृति की अलख जगाने का प्रयास कर रहे हैं। प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा कि सफाई तो अच्छी है पर उसमें ध्यान दें कि संस्कृति को न बहा दें। देश ही नहीं वरन विश्व में भारतीय अध्यात्म एवं संस्कृति की अलख जगाने वाले स्वामी परमानन्द जी महाराज ने यमुना किनारे की इसी माटी पर जन्म लिया था ।
ईश्वर के प्रति बालपन में ही उपजे प्रेम के वशीभूत हो उन्होंने घर बार त्याग संन्यास धारण कर लिया । वर्ष 1995 के आस पास जब स्वामी परमानन्द जी महाराज ने इस पावन भूमि पर अपने पग धरे तो कटीले बबूलों व उबड़ खाबड़ रास्तों वाला मवई गाँव मवई धाम बनकर लाखों की आस्था का केन्द्र बन गया । कई देशों में मवई धाम के पूजने वाले हैं । इस पूरे बीहड़ इलाके को अशिक्षा के अन्धकार से शिक्षा रुपी प्रकाश की ओर ले जाने वाले स्वामी जी ने विशाल युगपुरुष धाम मन्दिर का निर्माण कराया है । यमुना की कल कल ध्वनि के मध्य यहाँ का वातावरण भक्तिमय बना रहता है ।
स्वामी जी की शिष्याएं साध्वी ऋतंभरा , साध्वी निरंजन ज्योति आदि ने गुरु की पुण्य भूमि को तीर्थस्थल के रूप में परिवर्तित करने का संकल्प लिया है । जहाँ कभी लोग जाने से घबराते थे आज वही पवन तीर्थ बनती जा रही है । हरिद्वार , दिल्ली सहित देश के आधा दर्जन स्थानों में स्वामी जी आश्रमों में हजारों भक्त ईश्वर आस्था में जीवन के सच्चे मार्ग पाने के लिए लगे हुए हैं ।
आपकी यह बात तो स्वीकार्य है कि मेहनत की रोटी खानी चाहिए परंतु बंधु कब्जा करने में क्या कम मेहनत लगती है, कब्जा करके रोटी खाना मतलब एक पंथ दो काज।
जवाब देंहटाएंबेबस बेकसूर ब्लूलाइन बसें
akanksha to achchhi hai,dekhiye poori kab hoti hai ?
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