कल शाम को अचानक घुमते घुमते हाइडिल कालोनी में गया तो वहां चल रही भागवत कथा में बैठ गया ....लौट कर सोचा कि क्यों ना आपको भी कुछ अंश प्रषित कर दिए जाएँ?
शुद्घ मन और सात्विक विचारों को धारण करते हुये इस संसार में आचरण की पवित्रता से सब कुछ पाया जा सकता है। शिष्टाचार हमारी संस्कृति का अंग है और महापुरुषों द्घारा प्रस्तुत की गई जीवनशैली से हमारा भी मार्ग अवलोकित होता रहता है।
श्रीमद् भागवत प्रचार परिषद् के तत्वावधान में फतेहपुर के हाइडिल कालोनी में कथामंडपम की भागवत कथा के चौथे दिन कथावाचक श्रीहरनारायण जी ने कृष्ण रुक्मिणी प्रसंग के माध्यम से भक्तों को भक्तिभाव की गंगा में नहलाया।
आचार्य हरनारायण जी के अनुसार हमारी भारतीय संस्कृति में शिष्टाचार परंपरा का अंग है। साधु संतो ने जो परंपरायें विकसित है वैसी परंपरा विश्व में कहीं नहीं मिलती है। ऋषि-मुनियों की प्रेरणास्पद जीवनशैली का पालन और अनुसरण करके कोई भी सात्विक और सरल जीवन जी कर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
संत ने कहा कि आप जहां भी रहे बस भक्ति भाव से प्रभु स्मरण करते रहे। तीर्थयात्रा में जायें तो मन में सात्विक भाव व विचार रखें। विश्वास रखें कि जिस भी प्रभु मूर्ति का स्मरण करेंगे वह मूर्ति आपके मन-मंदिर में आ बैठेगी। मन की मलीनता मानव को सदैव ही सुअवसर से वंचित करती है। स्वच्छ मन ही स्वच्छ कर्मो का संबल बनता है। चिंतन, मनन और आचरण ही व्यक्ति को प्रभु प्रेम का पात्र बनाते है।
मैं तो मनन कर रहा हूँ और आप....?
सत्संग में भला ऐसे विचार क्य्नूकर न आयें ! अनुकरणीय !
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