अक्षय साहित्य कला केंद्र के 27वें कवि सम्मेलन में देश विख्यात कवि एवं रचनाकारों ने अपनी कविताओं के माध्यम से जहां वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक व्यवस्था पर कटाक्ष किये वहीं प्रबुद्ध रचनाकारों ने संस्कृति की रक्षा का पाठ पढ़ाया।
शनिवार की रात्रि कवि सम्मेलन का शुभारंभ डा. ओमप्रकाश अवस्थी ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया जिसमें लखनऊ की व्याख्या मिश्रा ने कहा कि कसम है तुम्हे कोई दूरी न रखना। ये अपनी कहानी अधूरी न रखना। इसी कड़ी में राष्ट्रीय कवि वाहिद अली वाहिद ने वैसे तो चल रही है, हर शाम की दावत। लेकिन मैं चाहता हूं किसी काम की दावत। इसी कड़ी को बढ़ाते हुये एटा के लटूरी सिंह लट्ठ कवि ने आजादी की लड़ाई में जिसने जितना योगदान दिया। उसे देश से बदले में उतनी ही इज्जत मिली थी। मैनपुरी के बलराम श्रीवास्तव ने कहा कि मां अभिमान न होने पाये, शास्वत स्वर संगत देना। दूजा रंग न चढ़ पाये, मां ऐसी रंगत देना।।
इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुये मवई धाम के स्वामी नित्यानंद ने कहा कि हम प्रकाश के संवाहक तम की, तमतमाहट झेली है। कितनी ही दीपावलियों के दिन हमने होली खेली है। आगे कवि तरुणेश सचान ने- एक भद्र खूंख्वार क्रांतिकारी हो गये। उसी वीर वर तूफानी का, हाल सुनो मेरे भइया, आदि अनेक कवियों ने सारी रात्रि लोगों को साहित्य के जरिये बांधे रखा।
कसम है तुम्हे कोई दूरी न रखना। ये अपनी कहानी अधूरी न रखना।
जवाब देंहटाएं-जता विस्तार से सुनाया जाये भाई मास्साब!!
प्रवीण जी, बहुत जोरदार शीर्षक लगाए हैं। पोस्ट भी उसी के अनुरूप है। इस शानदार चर्चा के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत सुंदर जी, कोई दुरी..... कुछ ओर प्रकाश डाले
जवाब देंहटाएंधन्यवाद