जिले की सौ किलोमीटर की धरती को छूती हुई पतित पावनी मां गंगा की धार बह रही है। दो दर्जन से अधिक घाट व दो सैकड़ा कस्बा व गांवों को खुशहाली का सन्देश देने वाली गंगा आज प्रदूषण से कराह रही हैं। जीवनदायिनी नदी जो हजारों लोगों की जीविका का साधन थीं आज उसका पानी इतना विषैला हो गया है कि तटवर्ती गांवों के लोग गंगा के पानी का उपयोग नहीं कर रहे हैं।
पतित पावनी गंगा जिले में औंग के पास से प्रवेश करती हैं। शिवराजपुर पहला घाट है इसके बाद देवमई, गुनीर, कंसपुर, ब्रम्हशिला, आदमपुर, खुशरूपुर, भिटौरा, असनी, देवरी, कोटला, नौबस्ता मुख्य घाट हैं। दो सैकड़ा से अधिक गांव जीवनदायिनी नदी से जुड़े हुए हैं। इन घाटों में अमावस्या, पूर्णिमा, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण सहित अन्य धार्मिक पर्वो में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर डुबकी लगाते हैं।
शिवराजपुर में कार्तिक का ऐतिहासिक मेला लगता है जहां जिले ही नहीं कई जनपदों के श्रद्धालु आकर इस प्राचीन धार्मिक नगरी में मोक्षदायिनी पर डुबकी लगाने के बाद मीराबाई द्वारा स्थापित किये गये बिहारी जी के मंदिर के दर्शन करते हैं। शिवराजपुर में गंगा तट पर आधा दर्जन प्राचीन मंदिर उसकी ऐतिहासिकता के मूक गवाह हैं।
काशी, हरिद्वार के बाद भृगुधाम भिटौरा वह पवित्र घाट है जहां उत्तरवाहिनी गंगा हैं। पौराणिक ग्रन्थों में भी उत्तर वाहिनी गंगा के महात्म्य को दर्शाया गया है। भिटौरा के बारे में यह इतिहास है कि यहां भगवान विष्णु को लात मारने वाले भृगु मुनि ने तपस्या की थी। इनकी तपस्थली का प्रतीक एक मड़फी आज भी बनी हुई है। भिटौरा में पुराने पक्के घाट के साथ स्वामी विज्ञानानंद जी ने करोड़ों की लागत पर एक नया ओमघाट विकसित किया है।
- जिले में पतित पावनी गंगा को प्रदूषित करने का मुख्य कारक शव प्रवाह है।
- गंगा किनारे के गांव के लोग मरे जानवर भी नदी में डालकर प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं।
- किसी भी श्मशान घाट पर इलेक्ट्रानिक शवदाह की व्यवस्था नहीं है। भिटौरा में लकड़ी का शवदाह गृह बनाया गया है, लेकिन उसमें शवों का दाह संस्कार इक्का-दुक्का ही हो पा रहे हैं। श्मशान घाट में जो अग्निदाह भी किये जाते हैं उसमें अधजली लकड़ी व अन्य गंदगी लोग गंगा जी में ही फेंक देते हैं।
- शहर का सीवर लाइन तो गंगा में नहीं जा रहा है, लेकिन गंगा किनारे के जो गांव हैं उनका गंदा पानी नदी में ही पहुंच रहा है।
- चौडगरा व मलवां की आधा दर्जन फैक्ट्रियों का गंदा पानी सीधे तो नहीं, लेकिन पाण्डु नदी के माध्यम से गंगा नदी में पहुंच रहा है।
- शहरी सीवेज का गंगा को गंदा करने से कोई सरोकार नहीं है। शहरी सीवेज का पानी ससुर खरेदी नदी पर गिराया जा रहा है।
- गंगा एक्शन प्लान के दौरान जिले में कोई भी काम नहीं कराया गया। सर्वे के बाद ही इस प्लान की इति श्री हो गयी।
- गंगा एक्शन प्लान में जिले में कुछ भी खर्च नहीं हुआ न ही निर्माण कार्य कराया गया।
- पतित पावनी मां गंगा के किनारे शिवराजपुर, भृगु मुनि की तपोस्थली भिटौरा, अश्रि्वनी कुमारों की नगरी असनी व नौबस्ता प्रमुख घाट हैं जो कि जिले के श्रद्धालुओं के लिए तीर्थ स्थल हैं। इन घाटों में बांदा, हमीरपुर से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
- पौराणिक इतिहास को समेटे गंगा किनारे के मुख्य गांवों के विकास के लिए कोई भी कार्य नहीं कराया गया। शिवराजपुर को पर्यटक स्थल बनाने के लिए कार्य योजना बनायी गयी थी, लेकिन शासन से स्वीकृति न मिलने से वह भी धरी की धरी रह गयी। भिटौरा में सरकारी स्तर पर तो कोई प्रयास नहीं किये गये। स्वामी विज्ञानानंद ने जरूर करोड़ों की लागत पर ओमघाट को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया है।
- गंगा किनारे के हर गांव में श्मशान घाट बने हैं जहां कटरी ही नहीं दो तिहाई आबादी के शवों का दाह संस्कार किया जाता है। मुख्य रूप से भिटौरा के श्मशान घाट में प्रतिदिन पंद्रह से बीस शव आते हैं। इसके अलावा नौबस्ता व शिवराजपुर में भी अधिक संख्या में शवों का संस्कार होता है। किसी भी श्मशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए पाण्डु नदी से गंगा को कचरा ही दान मिल रहा है। कानपुर व फतेहपुर के डेढ़ सौ से अधिक गांवों का गन्दा पानी व आधा दर्जन फैक्ट्रियों का कचरा इस नदी के माध्यम से गंगा में पहुंच रहा है। लोगों का मानना है कि बारिश में तो कोई बात नहीं अन्य महीनों में पाण्डु नदी में पानी नहीं गंदगी बहती है जो कि छिवली नदी से पांच किमी दूर गंगा में समाहित हो जाती है।
- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का न तो जिले में कार्यालय है और न ही गंगा के प्रदूषण को रोकने में इस बोर्ड का कोई सहयोग रहा है।
पर्यावरण संरक्षण के नाम पर हर वर्ष लाखों डकारने वाली संस्थाओं को जीवनदायिनी का प्रदूषण नजर नहीं आ रहा है। अलबत्ता यह जरूर है कि पिछले दो वर्षो से दैनिक जागरण की मुहिम से कई सामाजिक संगठन इस कार्य में आगे आये और प्रदेश का शायद यह पहला जनपद होगा जहां पिछले वर्ष शारदीय नवरात्र के बाद देवी प्रतिमाओं का भूविसर्जन कर निर्मल गंगा, अविरल गंगा की हुंकार भरी गयी। इस वर्ष तो नब्बे फीसदी देवी प्रतिमायें भू विसर्जित की गयीं।
ऐसा माना जा रहा है कि देवी प्रतिमाओं का जल विसर्जन रुकने से गंगा में जाने वाली लगभग पंद्रह सौ टन गंदगी बच गयी। इस कार्य में स्वामी विज्ञानानंद भागीरथ बनकर आगे आये। उन्होंने संतों की टोली के साथ गांव-गांव में भ्रमण कर शवों का विसर्जन रोकने व निष्प्रयोज्य पूजन सामग्री गंगा में न डालने का आहवान किया। भिटौरा में लकड़ी का शवदाह गृह बनवाया। नौबस्ता सहित अन्य घाटों में भी शव प्रवाह रुके इसके लिए वह शवदाह बनवाने की कार्ययोजना बनायी है। इस कार्य में अखिल भारतीय वैश्य एकता परिषद, हिन्दू महासभा, बजरंग दल, ब्राम्हण चेतना मंच का सहयोग रहा।
(साभार - दैनिक जागरण)
सार्थक पहल है प्रदूषण निवारण के लिए. जानकर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंआपने मां गंगा के लिए आलेख लिख बहुत ही अच्छा कार्य कर रहे है।
जवाब देंहटाएंvisit my blog
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