कहते हैं कि युवा ही देश की ताकत हैं और यह ही कल के भविष्य ही नहीं बल्कि खेवनहार हैं। हमें देखना यह है कि इस चुनाव में युवा अपनी स्पष्ट भूमिका की ओर बढ़ पा रहा है या नहीं। जागरुकता यदि ऐसी हो जाये कि हमें स्वच्छ छवि का ईमानदार व निष्ठावान सांसद चाहिए तो निश्चित तौर पर युवा किसी को भी देश की सर्वोच्च पंचायत में पहुंचाने की दमखम रखते हैं। मतदाता सूची के आयु वर्ग के आंकड़े चौकाने वाले हैं। पंद्रह लाख इकतालीस हजार मतदाताओं में से चालीस वर्ष से कम मतदाताओं की संख्या साढ़े सात लाख पहुंच रही है। अस्सी वर्ष से अधिक के मतदाता तो मात्र तेईस हजार की संख्या में बचे हैं। ऐसा माना जाता है कि इसमें से बीस फीसदी मतदाता ही वोट डालने पहुंचते हैं। सत्तर से उन्यासी वर्ष के बीच में मतदाताओं की संख्या तिहत्तर हजार पांच सौ सरसठ है।
साठ से उनहत्तर वर्ष के बीच एक लाख उनतालीस हजार मतदाता हैं। पचास से उनसठ वर्ष के बीच के मतदाताओं की संख्या दो लाख तेरह हजार है। यह कहा जाये कि दादा, बाबा के मतदाताओं से नहीं बच्चा के वोटों से ही प्रत्याशी संसद पहुंचेंगे तो गलत नहीं होगा। युवा वर्ग की भारी संख्या से सभी दलों के प्रत्याशियों ने भी अपना चुनावी रुख युवाओं की ओर मोड़ दिया है।
वैसे आप का कहना बिलकुल ठीक है. आजकल के बच्चे क्या चाहते हैं. एक अच्छी सी नौकरी या रोजगार के अवसर. जो भी पक्ष उनकी इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए कटिबद्ध हो, उसे वे वोट देंगे
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