पुण्य सलिला मां गंगा का आंचल कब निर्मल व अविरल होगा यह देखने के लिये मां के भक्तों की आंखें तरस रही हैं। राष्ट्रीय नदी घोषित होने के बाद भी टेनरियों का गंदा पानी कल-कल बहने वाली अविरल धारा को मटमैला ही नहीं इतना विषैला कर दिया है कि मां की गोद पर अठखेलियां करने वाले जलजीव भी अब नहीं बच पा रहे हैं। सदियों से सबके पाप-ताप धोने वाली पतित पावनी की बेबस निगाहों से भक्तों में तो बदलाव आ गया है और वह अब मां गंगा को बचाने के लिये न तो उसमें निष्प्रयोज्य पूजन सामग्री डालते हैं और न ही गंदगी फैलाते हैं।
बसंत ऋतु में पहले कभी गंगा की अविरल धार कल-कल कर बहती थी अब वह मंद पड़ गयी है। पानी कम होने से जगह-जगह टापू निकल आये हैं और काले व हरे रंग का पानी इतना विषैला हो गया है कि मां गोद में अठखेलियां करने वाले जलजीवों की जान पर बन आयी है। गंगा किनारे के केवटों की मानें तो छोटी मछलियां तो इस समय तड़प-तड़प कर मर रही हैं। कछुवा भी पानी से निकलकर रेत में अपना बसेरा बना रहे हैं। उत्तरवाहिनी भृगुधाम भिटौरा के पक्के घाट व ओम घाट से गंगा की धार दो सौ मीटर दूर चली गयी है। पानी दो धाराओं पर इतने मंद गति से बह रहा है कि गंदगी बहने के बजाय घाट के किनारों पर जम गयी है।
पतित पावनी मां के निर्मल व अविरल स्वरूप को देखने के लिये भक्तों की आंखें तरस रही हैं। केन्द्र सरकार ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिया इससे लोगों में यह उल्लास बढ़ा था कि जल्द ही कुछ ऐसे प्रयास होंगे कि पतित पावनी की अविरल बहने वाली धार पहले की तरह दिखेगी। महानगरों की टेनरियों का गंगा में गिरने वाला पानी रोका जायेगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। तभी तो मां का आंचल और भी गंदा होता जा रहा है। समर्पित भक्त मां की इस स्थिति को देखकर दुखी हो रहे हैं। कहते हैं कि भक्त तो पतित पावनी को अविरल व निर्मल रखने के प्रयास कर रहे हैं वह न तो निष्प्रयोज्य पूजन सामग्री डाल रहे हैं और न ही शव प्रवाहित करते हैं। भिटौरा के श्मशान घाट में एक साल पहले आने वाले अस्सी फीसदी शव का जल प्रवाह होता था अब ठीक इससे उलट हो गया है। बमुश्किल दस फीसदी शवों का ही जल प्रवाह हो रहा है। नब्बे फीसदी शव जलाये जा रहे हैं। गंगा भक्त यही कहते हैं कि सरकार के प्रयास नाकाफी होने से मां का आंचल निर्मल नहीं हो रहा है।
बसंत ऋतु में पहले कभी गंगा की अविरल धार कल-कल कर बहती थी अब वह मंद पड़ गयी है। पानी कम होने से जगह-जगह टापू निकल आये हैं और काले व हरे रंग का पानी इतना विषैला हो गया है कि मां गोद में अठखेलियां करने वाले जलजीवों की जान पर बन आयी है। गंगा किनारे के केवटों की मानें तो छोटी मछलियां तो इस समय तड़प-तड़प कर मर रही हैं। कछुवा भी पानी से निकलकर रेत में अपना बसेरा बना रहे हैं। उत्तरवाहिनी भृगुधाम भिटौरा के पक्के घाट व ओम घाट से गंगा की धार दो सौ मीटर दूर चली गयी है। पानी दो धाराओं पर इतने मंद गति से बह रहा है कि गंदगी बहने के बजाय घाट के किनारों पर जम गयी है।
पतित पावनी मां के निर्मल व अविरल स्वरूप को देखने के लिये भक्तों की आंखें तरस रही हैं। केन्द्र सरकार ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिया इससे लोगों में यह उल्लास बढ़ा था कि जल्द ही कुछ ऐसे प्रयास होंगे कि पतित पावनी की अविरल बहने वाली धार पहले की तरह दिखेगी। महानगरों की टेनरियों का गंगा में गिरने वाला पानी रोका जायेगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। तभी तो मां का आंचल और भी गंदा होता जा रहा है। समर्पित भक्त मां की इस स्थिति को देखकर दुखी हो रहे हैं। कहते हैं कि भक्त तो पतित पावनी को अविरल व निर्मल रखने के प्रयास कर रहे हैं वह न तो निष्प्रयोज्य पूजन सामग्री डाल रहे हैं और न ही शव प्रवाहित करते हैं। भिटौरा के श्मशान घाट में एक साल पहले आने वाले अस्सी फीसदी शव का जल प्रवाह होता था अब ठीक इससे उलट हो गया है। बमुश्किल दस फीसदी शवों का ही जल प्रवाह हो रहा है। नब्बे फीसदी शव जलाये जा रहे हैं। गंगा भक्त यही कहते हैं कि सरकार के प्रयास नाकाफी होने से मां का आंचल निर्मल नहीं हो रहा है।
अभी तक गंगा के पानी को निर्मल किए जाने और धारा को बनाए रखने का सिर्फ कागजी कार्य ही हुए है ... मालूम नहीं गंगाप्रेमियों को कबतक इंतजार करना पडेगा ... इन कागजी बातों को हकीकत में बदले जाने का
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