आज विज्ञान दिवस है पर पूरे जिले में विज्ञान शिक्षण किसी रूप में हो रहा है। सरकारी या प्रशासनिक स्तर पर कोई वैज्ञानिक हलचल होती नहीं समझ में आती है। इस वैज्ञानिक युग में इस जिले में एक भी केवल विज्ञान विषयों के लिये विद्यालय नहीं है इतना ही नहीं 12वीं पास कर चुकने के बाद विज्ञान के अध्यवसायी को दूसरे बड़े नगरों का रूख करना पड़ता है। गांवों की बात छोड़ दे तो भी इस नगर में एक भी महाविद्यालय विज्ञान शिक्षण के लिये नहीं है। नगर परिक्षेत्र में इंटर मीडिएट स्तर पर गिनती के दो एक विद्यालय हैं जहां विज्ञान के शिक्षण की व्यवस्था है बाकी शिक्षा संस्थान विज्ञान के शिक्षण प्रशिक्षण के नाम पर शून्य हैं। कहीं पर विज्ञान विषय नहीं है तो कहीं पर प्रयोगशाला दयनीय हाल में है, कहीं पर दोनो हैं तो विज्ञान शिक्षक का टोटा है। नगर स्थित महाविद्यालय में विज्ञान विषय की सुविधा नहीं है। जिले में भी गिनती के नव स्थापित महाविद्यालय हैं जहां पर विज्ञान विषय की सुविधा है पर यहां के शिक्षकों की ज्ञान गरिमा के बारे में पढ़ रहे छात्र ही बेहतर जानते हैं।
राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस के जिला समन्वयक का कहना हैं कि यहा विज्ञान के अध्ययन की कोई सुविधा ही नहीं है। ऐसा नहीं है कि यहां वैज्ञानिक प्रतिभायें नहीं हैं मुश्किल यह है कि कोई उनकी ओर निहारने वाला नहीं है। विज्ञान के अध्ययन के उपयुक्त परिवेश नहीं है। विज्ञान शिक्षक सुरेंद्र सिंह का कहना हैं कि विज्ञान के उपयुक्त माहौल बने इसकी चिंता प्रशासन को कभी नहीं होती है। इससे विज्ञान के विद्यार्थी मायूस होकर दूसरे नगरों को पलायन करते हैं। राजकीय इंटर कालेज के प्रधानाचार्य का मानना हैं कि यहां पर लगातार तारतम्य ढंग से विज्ञान का शिक्षण प्रशिक्षण हो इसके लिए सबसे पहले प्रायोगिक सुविधायुक्त संस्था होनी चाहिए।
विज्ञान तो पढ़ना चाहते हैं पर ..
जहां से जिला योजना में विज्ञान शिक्षण प्रशिक्षण मद में आया धन बिना खर्च हुए वापस हो जाता हो वहां से अच्छे चिकित्सक, अभियंता या वैज्ञानिक निकलेंगे भी कैसे? इंटर की परीक्षा में सम्मिलित होने जा रहे विज्ञान वर्ग के विद्यार्थी मायूस तो हैं ही निराश भी हैं। मायूस इसलिए कि विज्ञान के क्षेत्र में पढ़ाई और काम करने का कुछ हासिल नहीं है बनाये गये प्रोजेक्ट धूल खा रहे हैं। निराश इसलिए कि विज्ञान की उच्च शिक्षा के उपयुक्त न परिवेश है और न ही प्रायोगिक व्यवस्था जिससे परिणाम शून्य हो जाता है।
बारहवीं की परीक्षा देने जा रहे बच्चे अभी से हैरान हैं कि स्नातक स्तर पर विज्ञान की पढ़ाई अब वह अपने शहर में नहीं कर सकेंगे। बच्चों से बातचीत करने पर उनका कहना था कि जहां पढ़ता हूं वहां तो ठीक है पर आगे कुछ नहीं दिखाई देता। अपने नगर में विज्ञान की पढ़ाई न कर पाने का दर्द व्यक्त करते हुए बच्चों का कहना था कि केवल डिग्री कालेज होने से ही तो सब कुछ नहीं हो जाता वहां पर शिक्षण के उपयुक्त सुविधाएं भी तो मिलनी जरूरी हैं। साथ ही कहा कि किताबें तो कहीं भी पढ़ी जा सकती हैं न समझ में आने पर सामने वाले से सहायता भी ली जा सकती है पर प्रायोगिक व्यवस्था के बिना सब शून्य हो जाता है बिना प्रयोग किये विज्ञान के चैप्टर पूरी तरह समझ में नहीं आते। पूरे जिले में एक भी ढंग का विज्ञान शिक्षण हेतु कोई संस्था नहीं है जहां पर थ्योरी के साथ प्रैक्टिकल की भी समुचित जानकारी और सुविधा मिल सके। ऐसे में बहुत सी प्रतिभाएं जो बाहर रहकर नहीं पढ़ सकतीं वह मन मारकर विषय परिवर्तन करने को मजबूर होते हैं। पुराने कालेज में विज्ञान विषय में उपयुक्त सुविधा नहीं है नये खुल रहे महाविद्यालय भी उच्च स्तरीय प्रायोगिक सुविधाएं नहीं दे पा रहे हैं साथ ही यहां पर स्टाफ भी संतोषजनक काम करने वाला नहीं मिल पाता है।
आप जिस तरह के मुद्दे और प्रश्न उठाते हैं, वे अपने-आप में महत्वपूर्ण हैं। एक बार लोगों को यह समझ आ जाय कि समस्या/बिमारी क्या है, तो हल भी निकल आयेगा| असली समस्या यह होती है कि लोगोंको समस्या का ठीक से पहचान नहीं हो पाती।
जवाब देंहटाएंबेहद संजीदा मुद्दा उठाया है आपने। इसलिए हमारे बच्चे हमेशा विज्ञान में पीछे रहते हैं।
जवाब देंहटाएंहर जगह यही होता है गुरुजी. क्या कर सकते हैं?
जवाब देंहटाएंयह परिदृश्य बहुत चिंताजनक है क्या किया जाय इसके लिए ?
जवाब देंहटाएंमास्टर जी आप बहुत ही सही बाते लिखते है, अच्छी शिकायते भी, लेकिन भारत मै कोन सुनता है किसे परवाह है सब को अपनी पडी है, ओर जिन के हाथ मे यह सब है उन्हे अकल नही की देश के नोजवान पढ लिख कर देश का नाम रोशन करेगे, उन्हे सिर्फ़ अपनी ऎश करने से मतलब है.
जवाब देंहटाएंओर इस लिये हमारे देश मै बहुत सी प्रतिभाऎ युही रह जाती है, चहे वो विग्याण का क्षेत्र हो या खेलो का..
धन्यवाद