सांसद विकास निधि योजना में जिस तरह से निजी स्कूलों की हिस्सेदारी बढ़ती जा रही है उससे आम जनता यही कहती है कि इसे तो विद्यालय निधि का नाम दे देना चाहिए। दूसरे काम माननीयों को नजर ही नहीं आते हैं। पिछले चार वर्षो के आंकड़ों को यदि लिया जाये तो सांसद निधि से तकरीबन चालीस से पचास फीसदी धन स्कूलों की इमारतों को संवारने के लिये दिया गया। बरातघर, मिलन केन्द्र, सीसी रोड, खड़ंजा आदि की हिस्सेदारी चालू वित्तीय वर्ष में चुनावी वर्ष के कारण अवश्य बढ़ी पर इसके पहले प्राथमिकता स्कूलों को ही मिलती रही है।
दो करोड़ की थैली में विद्यालयों को तकरीबन अस्सी लाख रुपये की धनराशि दी गयी है। जबकि सबसे अहम् समस्या विद्युत पर सांसद की थैली से मात्र चालीस हजार रुपये ही निकले हैं। आम मतदाता कहते हैं कि विद्यालयों को धनराशि देने के चक्कर में जरूरतें पीछे पड़ जाती हैं। पिछले चार सालों से सड़क, खड़ंजा व नाली के लिये पैसा मांगा जा रहा है। अंतत: अंतिम वर्ष मिल पाया है। कुछ लोगों को तो इस आश्वासन पर टाल दिया गया कि जीत गये तो फिर काम अवश्य करायेंगे।
स्कूलों को पैसा देने के सवाल पर वर्तमान सांसद महेंद्र निषाद का कहना है की ऐसा नहीं है जो क्षेत्र शिक्षा से पिछड़े हुए हैं वहां के स्कूलों को सुविधा सम्पन्न बनाने के लिये धनराशि दी गयी है और इसका लाभ समाज के हर वर्ग को मिलेगा।जबकि हर आम आदमी सामझता है की विद्यालय में धन लगाने के माननीयों को क्या क्या फायदे मिलते है ।
सांसद निधि का खेल निराला है। फाइलों में ही नजर आता है विकास। स्वर्गीय राजीव गांधी ने पहली बार इस सच को सार्वजनिक मंच से कहा था कि विकास के लिए चलने वाला रुपया ग्रास रूट लेबल तक आते-आते बीस पैसे में तब्दील हो जाता है।
जवाब देंहटाएंसांसदों और विधायकों को उपकृत करने के लिए क्या क्या रास्ते निकाल लिए गए है. नारायण नारायण.
जवाब देंहटाएंयह भी एक रास्ता है वोटो तक पहुचने का. बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जिन्दा ६०%कमिशन का खेल है स्कूलों को रु. देना . माननीयों को CHUNAAV KHARCH भी तो चाहिए
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