महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर शिवभक्त अपने औघड़दानी बाबा भोले को मनाने की तैयारियों में जुट गए हैं। जिले के शिवालयों में इसकी तैयारियां की जाने लगी हैं। इन्हीं में एक पावन धाम है थवईश्वर बाबा।
थवईश्वर बाबा का धाम गजब की पौराणिक कथाओं और आस्थाओं को समेटे यह स्थान शिव-भक्तों की खासी श्र्रद्धा का प्रतीक है। थवईश्वर बाबा के विशाल शिवलिंग के दर्शन मात्र से मुंह मांगा वरदान श्र्रद्धालुओं को मिलता है। इसलिए शिवरात्रि के अवसर पर यहां दूर दराज से शिवभक्तों का जमावड़ा एकत्र होता है।शिवरात्रि के दिन इस धाम में सैकड़ों घंटे-घडियालों और शंखनाद की आवाजों को सुनने के लिए दूर-दूर से आने वाले मन में श्रृद्धा और मनवांक्षित फल की प्राप्ति के लिए एकत्रित होते हैं। भोले को मनाने के लिए ऊँ नमः शिवाय, बम-बम शिव-शिव के गगनभेदी जयकारों से मंदिर परिसर गूंजता रहता है।
बताते हैं कि यहां जैसा विशाल शिवलिंग इस जिले में ही नहीं वरन आसपास के जिलों में भी नहीं है। मान्यता है कि यह शिवलिंग प्रतिदिन एक चावल के आकार का बढ़ता है। फूल, बेलपत्र, धतूरा, गुड़ की भेलियां आदि वस्तुओं से पूजा की थाल सजाकर श्र्रद्धालु इनकी पूजा करते हैं। यहां पर परिक्रमा का महत्व है। श्र्रद्धानुसार अपने-अपने तरीके से कोई लेट कर बाबा के दर्शन के लिए आता है तो कोई भागीरथी से गंगाजल लेकर नंगेपैर बाबा से अर्जी लगाता है।
यहां की विचित्र आस्था है कि शिवभक्त गुड़ की भेलियों को मंदिर के एक छोर से दूसरे छोर में फेंकते हैं। वहीं दूसरे छोर पर भगवान का प्रसाद मानते हुए लपकने वालों की खासी भीड़ बनी रहती है। इस दिन एक विशाल मेले का आयोजन भी होता है। मेले में दैनिक वस्तुओं सहित तमाम दुर्लभ वस्तुओं की खरीद- फरोक्त के लिए लोग एकत्रित होते हैं।
थवईश्वर बाबा का धाम गजब की पौराणिक कथाओं और आस्थाओं को समेटे यह स्थान शिव-भक्तों की खासी श्र्रद्धा का प्रतीक है। थवईश्वर बाबा के विशाल शिवलिंग के दर्शन मात्र से मुंह मांगा वरदान श्र्रद्धालुओं को मिलता है। इसलिए शिवरात्रि के अवसर पर यहां दूर दराज से शिवभक्तों का जमावड़ा एकत्र होता है।शिवरात्रि के दिन इस धाम में सैकड़ों घंटे-घडियालों और शंखनाद की आवाजों को सुनने के लिए दूर-दूर से आने वाले मन में श्रृद्धा और मनवांक्षित फल की प्राप्ति के लिए एकत्रित होते हैं। भोले को मनाने के लिए ऊँ नमः शिवाय, बम-बम शिव-शिव के गगनभेदी जयकारों से मंदिर परिसर गूंजता रहता है।
बताते हैं कि यहां जैसा विशाल शिवलिंग इस जिले में ही नहीं वरन आसपास के जिलों में भी नहीं है। मान्यता है कि यह शिवलिंग प्रतिदिन एक चावल के आकार का बढ़ता है। फूल, बेलपत्र, धतूरा, गुड़ की भेलियां आदि वस्तुओं से पूजा की थाल सजाकर श्र्रद्धालु इनकी पूजा करते हैं। यहां पर परिक्रमा का महत्व है। श्र्रद्धानुसार अपने-अपने तरीके से कोई लेट कर बाबा के दर्शन के लिए आता है तो कोई भागीरथी से गंगाजल लेकर नंगेपैर बाबा से अर्जी लगाता है।
यहां की विचित्र आस्था है कि शिवभक्त गुड़ की भेलियों को मंदिर के एक छोर से दूसरे छोर में फेंकते हैं। वहीं दूसरे छोर पर भगवान का प्रसाद मानते हुए लपकने वालों की खासी भीड़ बनी रहती है। इस दिन एक विशाल मेले का आयोजन भी होता है। मेले में दैनिक वस्तुओं सहित तमाम दुर्लभ वस्तुओं की खरीद- फरोक्त के लिए लोग एकत्रित होते हैं।
आभार जानकारी के लिए.
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