फतेहपुर में देवोत्थानी एकादशी छोटी दीवाली के रूप में घर-घर खुशियों के रूप में मनायी गयी। श्रीहरि के आंगन में आने के लिये पूजा स्थल से सीढ़ी बनाकर शाम को नई फसलों के साथ भगवान की पूजा, अर्चना की गयी। देव स्थानों के नाम पर दीप प्रज्वलित कर अंधेरे को मिटाने के लिये प्रकाश किया गया साथ ही बच्चों ने पटाखे व फुलझड़ियां छुटाकर खुशियां मनायीं।
दीपमालिका पर्व के ठीक ग्यारहवें दिन देवोत्थानी एकादशी का पर्व छोटी दीवाली के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु चार महीने की चिर निद्रा से आज के दिन ही जगते हैं और वह देवोत्थानी एकादशी को पृथ्वीलोक का भ्रमण करते हैं। कुछ लोग भगवान शंकर व पार्वती के पृथ्वी लोक में भ्रमण की किंवदंती पर विश्वास करते हैं। देवोत्थानी एकादशी पर खास बात यह है कि फसलों के नये आगाज के साथ पूजा, अर्चना की जाती है। सनातन परिवारों में शाम को भगवान विष्णु व लक्ष्मी-गणेश की सामूहिक पूजा, अर्चना की गयी। घर के पूजा स्थल से आंगन तक चावल व हल्दी से सीढ़ी इस मान्यता के साथ बनायी गयी कि श्री हरि आंगन में पैर रखेंगे और उससे सुख, समृद्धि व वैभव का आशीर्वाद मिलेगा। महिलाओं ने चने का साग, बेर, गन्ना, सिंघाड़ा से भगवान विष्णु व लक्ष्मी-गणेश की पूजा अर्चना की। देव स्थानों के नाम से दीप प्रज्वलित कर घरों में रोशनी किया। माना जाता है कि आषाढ़ शुक्ल की प्रबोधिनी एकादशी से देवता शयनकाल में चले जाते हैं, जिनका जागरण कल देवोत्थानी एकादशी पर होता है।देवोत्थानी एकादशी से मांगलिक कार्यो का सिलसिला शुरू हो जाएगा और शादी-ब्याह, गृह प्रवेश, उपनयन संस्कार, नामकरण व अन्य अनुष्ठान किए जाएंगे।
दिनभर का व्रत रखकर पूजा, अर्चना के इस माहौल में बच्चों ने त्योहार की खुशियां कुछ अलग ही अंदाज में मनायी। शाम से ही पटाखे छुटाने के साथ फुलझड़ी व अनार से आतिशबाजी का मजा लिया ।
दीपमालिका पर्व के ठीक ग्यारहवें दिन देवोत्थानी एकादशी का पर्व छोटी दीवाली के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु चार महीने की चिर निद्रा से आज के दिन ही जगते हैं और वह देवोत्थानी एकादशी को पृथ्वीलोक का भ्रमण करते हैं। कुछ लोग भगवान शंकर व पार्वती के पृथ्वी लोक में भ्रमण की किंवदंती पर विश्वास करते हैं। देवोत्थानी एकादशी पर खास बात यह है कि फसलों के नये आगाज के साथ पूजा, अर्चना की जाती है। सनातन परिवारों में शाम को भगवान विष्णु व लक्ष्मी-गणेश की सामूहिक पूजा, अर्चना की गयी। घर के पूजा स्थल से आंगन तक चावल व हल्दी से सीढ़ी इस मान्यता के साथ बनायी गयी कि श्री हरि आंगन में पैर रखेंगे और उससे सुख, समृद्धि व वैभव का आशीर्वाद मिलेगा। महिलाओं ने चने का साग, बेर, गन्ना, सिंघाड़ा से भगवान विष्णु व लक्ष्मी-गणेश की पूजा अर्चना की। देव स्थानों के नाम से दीप प्रज्वलित कर घरों में रोशनी किया। माना जाता है कि आषाढ़ शुक्ल की प्रबोधिनी एकादशी से देवता शयनकाल में चले जाते हैं, जिनका जागरण कल देवोत्थानी एकादशी पर होता है।देवोत्थानी एकादशी से मांगलिक कार्यो का सिलसिला शुरू हो जाएगा और शादी-ब्याह, गृह प्रवेश, उपनयन संस्कार, नामकरण व अन्य अनुष्ठान किए जाएंगे।
दिनभर का व्रत रखकर पूजा, अर्चना के इस माहौल में बच्चों ने त्योहार की खुशियां कुछ अलग ही अंदाज में मनायी। शाम से ही पटाखे छुटाने के साथ फुलझड़ी व अनार से आतिशबाजी का मजा लिया ।
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